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'संतमत दर्शन' लाल दास साहित्य सीरीज की दूसरी पुस्तक है। इसमें गुरु गीता से सम्मानित पुस्तक 'महर्षि मेंहीं पदावली' पुस्तक की प्रथम पद्य की व्याख्या की प्ररस्तुुुुुुत की गई है। इसकी ऐसी महिमा है कि अगर कोई व्यक्ति इसके प्रत्येक शब्द को अच्छी तरह समझ जाए, तो उसे मनुष्य का ही शरीर मिलेगा, जब तक कि उसे मुक्ति प्राप्त नहीं हो जाती है। ऐसा सदग्रंथों में कहा गया है।
इह चेदशकद्बोद्धं प्राक्शरीरस्य विस्रसः ।
ततः सर्गेषु लोकेषु शरीरत्वाय कल्पते ॥४ ॥
केनोपनिषद, अध्याय २ , वल्ली ३
गी ० प्रे ० गो ० , भा ० अ ० - यदि इस देह में इसके पतन से पूर्व ही ( ब्रह्म को ) जान सका तो बन्धन से मुक्त होता है , यदि नहीं जान पाया तो इन जन्म मरणशील लोकों में वह शरीर - भाव को प्राप्त होने में समर्थ होता है ।४ ॥
यह Pustak संतमत सत्संग साहित्य का सिरमौर और संत छोटेलाल ( पूज्यपाद लालदास जी महाराज ) बाबा द्वारा विरचित पुस्तकों में ईश्वर-स्वरूप का बोध कराने में सर्वश्रेष्ठ है। इसे "सत्संग ध्यान ऑनलाइन स्टोर" से ओनलाइन और औफलाइन खरीदा जा सकता है।
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