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MS01 सत्संग-योग चारो भाग
ऋषि-मुनियों, साधु-संतों की वाणीयुक्त सत्संग-योग
प्रभु प्रेमियों ! सत्संग - योग चारों भाग ' आध्यात्मिक ज्ञान के लिए भानुमति के पिटारे के समान अद्भुत है। इसे सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज द्वारा लिखा और संपादित किया गया है। इसमें प्राचीन ऋषियों, आधुनिक संत-महात्माओं, विद्वान साधु-साधकों द्वारा अध्यात्म, योग, ईश्वर, भक्ति आदि बातों से संबंधित वाणियों का समागम है । अनेक सत्पुरुषों और सन्तों के संग का प्रतिनिधि - स्वरूप यह ' सत्संग - योग ' है । इसे चार भागों में लिखा गया है और चारों भागों को एक साथ ही प्रकाशित किया गया है। हाँ केवल चौथे भाग को मोक्ष- दर्शन के नाम से अलग से भी प्रकाशित किया जाता है।
सत्संग-योग चारो भाग का परिचय
इस ग्रंथ में वेदों, उपनिषदों, श्रीमद्भगवद्गीता , श्रीमद्भागवत, अध्यात्मरामायण, शिव-संहिता, ज्ञान सङ्कलिनी तन्त्र , बृहत्तन्त्रसार , ब्रह्माण्ड पुराणोत्तर गीता , महाभारत और दुर्गा सप्तशती इत्यादि के मोक्ष - सम्बन्धी सदुपदेशों का लाभ प्रथम भाग से प्राप्त होता है ।
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मोक्ष-मार्ग का नक्शा या सांकेतिक चित्र |
दूसरे भाग में भगवान् महावीर , भगवान् बुद्ध , भगवान् शंकराचार्य , महायोगी गोरखनाथ जी महाराज , संत कबीर साहब , संत रैदास , सन्त कमाल साहब , गुरु नानक साहब , दादू दयाल साहब , पलटू साहब , सुन्दर दास जी महाराज , गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज , भक्तवर सूरदास जी महाराज , हाथरस - निवासी तुलसी साहब , राधास्वामी साहब , श्रीरामकृष्ण परमहंस , स्वामी विवेकानन्द जी महाराज , लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक , बाबा देवी साहब इत्यादि बावन सन्तों , महात्माओं और भक्तों के सदुपदेश हैं ।
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सत्संग योग चारो भाग ( अंग्रेजी में) |
इन भागों में भक्ति और मुक्ति के साधन में सत्संग, गुरु- सेवा, परम प्रभु परमात्मा में अत्यन्त प्रेम, सदाचार, हृदय की शुद्धि, जप और ध्यान- इन सातों का ही साधन मुख्य करके कहा गया है। ध्यान-साधन में स्थूल ध्यान और सूक्ष्म ध्यान- दोनों का वर्णन है। सूक्ष्म ध्यान में विन्दु- ध्यान - ज्योतिर्ध्यान - दृष्टियोग का तथा नादानुसन्धान वा नाद ध्यान वा सुरत-शब्द-योग का वर्णन पाया जाता है।
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सत्संग योग का लास्ट कवर पेज |
"सत्संग- द्वारा श्रवण-मनन से मोक्षधर्म-सम्बन्धी मेरी जानकारी जैसी है, उसका ही वर्णन चौथे भाग में मैंने किया है। परमात्मा, ब्रह्म, ईश्वर, जीव, प्रकृति, माया, बन्ध-मोक्षधर्म वा सन्तमत की उपयोगिता, परमात्म-भक्ति और अन्तर-साधन का सारांश साफ-साफ समझ में आ जाय - इस भाग के लिखने का हेतु यही है। इसके सत्य प्रतीत होनेयोग्य बातें सन्त तुलसी साहब की हैं- विश्वास करनेयोग्य है; क्योंकि तुलसी साहब के ऐसे सच्चे सन्त के सत्य, युक्तियुक्त बातें ही कही जानेयोग्य हो सकती हैं। इसीलिए मैंने 'घटरामायण' के उद्धरणों को सन्त तुलसी साहब की वाणी के अन्दर रखा है।"
सत्संग सेवक
--मेँहीँ
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