Product Description
" महर्षि मेंहीं के अदभुत चमत्कार " गुरुमहाराज के प्रेरणा का प्रतिफल है । जब मैं गुरुदेव ( महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज ) की सेवा में रहता था तब कभी - कभी गुरुमहाराज के अदभुत चमत्कारों की घटना उनके मुखारविन्द से अथवा सत्संग , प्रवचन एवं भक्तों के बीच उपदेश के क्रम में सुना करता था । मैंने संतमत की कई पुस्तकों में गुरुमहाराज के अदभुत संस्मरण को यत्र - तत्र प्रकाशित भी पाया । कुछ पुस्तकों के अध्ययन करने पर मेरे मन पर विशेष प्रभाव पड़ा । अत : मुझे लगा - यदि अधिक - से - अधि क संस्मरणों को संग्रह कर पुस्तक का एक वृहद रूप दिया जाय तो पाठकों को सरलतापूर्वक ढेड सारा संस्मरण एक साथ पढ़ने को मिल जाएगा । अतः मैंने संस्मरण संग्रह कर पाठकों के बीच महर्षि मेंहीं अदभुत चमत्कार " नामक पुस्तक प्रस्तुत किया । गुरुमहाराज का चमत्कार- कोई खेल , तमाशा दिखाने जैसा नहीं है । उन्होंने संतमत की सार साधना से अपने को आत्मस्वरूप में स्थित कर लिया था । उन्हीं शक्ति का प्रस्फुटित रूप चमत्कार है । गुरुमहाराज ने चमत्कार ' के विषय में कहा है- " सदाचार पालन ही चमत्कार है । सिद्धि से बढ़कर शुद्धाचरण है । रावण ने बहुत चमत्कार दिखाया , लेकिन उसका नाम दुष्टों के लिस्ट ( सूची ) में है । तब के और अब के साधु सिद्धि बगेरह दिखाए हैं और नीचे भी गिरे हैं । सदाचार के पालन में मजबूत होना , सरल नहीं है और जो मजबूत है वह छिपता नहीं है । " हमारे गुरुमहाराज प्रकाश और शब्द मण्डल को पार कर शब्दातीत में चले गए थे इसीलिए इनका जीवन पूर्ण चमत्कारिक था । इनको तो दूरदर्शन एवं दूरश्रवण प्राप्त था अतः ये कहीं भी बैठे - बैठे दूर से दूर तक देखते थे और दूर - से - दूर के शब्दों को सुन लेते थे । इनका चमत्कार ऐसा था कि इनके आशीर्वाद से - कितने नि र्धन धनी बन गए , कितने को जेल का संकट टलगया , कितने अध्यात्म की ऊँचाई पर चढ़ गये , किसी को असाध्य रोगों से मुक्ति मिल गई , कितने की जान मृत्यु के मुख से लौट आई ।
ऐसे ही लोगों के स्वानुभव 45 प्रसंगों का अनूठा संकलन है यह पुस्तक।
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