LS04, पिंड माहिं ब्रह्मांड ।। Amazing feature of human body ।। मनुष्य शरीर में विश्व ब्रह्मांड दर्शन

LS04, पिंड माहिं ब्रह्मांड ।। Amazing feature of human body ।। मनुष्य शरीर में विश्व ब्रह्मांड दर्शन

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सद्गुरुजी ने एक नक्शा लगवाया है , जिसका नाम है- “ अनन्त में सान्त , सान्त में अनन्त तथा ब्रह्माण्ड में पिण्ड , पिण्ड में ब्रह्माण्ड का सांकेतिक चित्र । " थोड़ी भिन्नता के साथ यही नक्शा जहाँ - तहाँ संतमत के सत्संग - मन्दिर की दीवार पर भी बनवाया गया देखने को मिलता है ।

 ' सत्संग - योग , चारो भाग ' का पहला प्रकाशन सन् १९३९ ई ० में हुआ है । संभव है , तभी से यह नक्शा उसमें संलग्न किया जाता रहा हो । इन लगभग ५१ वर्षों की लम्बी अवधि में लक्ष - लक्ष सत्संग - प्रेमियों के मन में इस नक्शे को देखकर इसको पूरी तरह समझने का कुतूहल अवश्य जाग्रत् हुआ होगा और आज भी प्रत्येक सत्संगप्रेमी इसे समझने के लिए उत्कंठित हैं ; परन्तु उनके कुतूहल की शान्ति के लिए न कभी किन्हीं के द्वारा इसपर कोई पुस्तक लिखने का प्रयत्न किया गया और न कभी मौखिक रूप से ही किन्हीं के द्वारा संपूर्णता से इसकी व्याख्या की गयी ।

 बड़े हर्ष का विषय है कि लेखक ने पहले - पहल इस नक्शे पर व्याख्यात्मक ग्रंथ ' पिण्ड माहिँ ब्रह्माण्ड ' लिखकर इस दिशा में एक महान् और साहसपूर्ण कार्य किया है । यह बात बिलकुल सत्य है कि विषय बहुत गहन और जन सामान्य के लिए दुर्बोध है , फिर भी मेरा विश्वास है कि सामान्य जिज्ञासु भी यदि पुस्तक को क्रमिक रूप से मनन - पूर्वक दो - चार बार पढ़ लेंगे , तो वे इसे पूरी तरह आत्मसात् कर सकने में सक्षम हो जाएंगे । इसे अच्छी तरह समझ लेने पर सत्संग - प्रेमियों को बौद्धिक संतृप्ति तो होगी  ही , साथ - ही - साथ आध्यात्मिक साधना के अन्तर्मार्ग पर अग्रसर होने के लिए उन्हें समुचित दिशा - निर्देश भी प्राप्त हो जाएगा । व्याख्या आदि से अन्त तक सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी है , जो बड़ी ही संतोषजनक और सर्वत्र सबल प्रमाणों से संपुष्ट है । 
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