MS07 महर्षि मेँहीँ पदावली  ||  स्तुति-प्रार्थना, सन्तमत सिद्धांत, ध्यान-योग, संकीर्तन, आरती आदि के संकलन

MS07 महर्षि मेँहीँ पदावली || स्तुति-प्रार्थना, सन्तमत सिद्धांत, ध्यान-योग, संकीर्तन, आरती आदि के संकलन

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MS07 महर्षि मेँहीँ पदावली

     प्रभु प्रेमियों ! महर्षि मेँहीँ साहित्य सीरीज की सातवीं पुस्तक "महर्षि मेँहीँ पदावली" है ।  इस पुस्तक में सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराजज के सभी पद्यों, छंदों या भजनों का संकलन है। इसके 145 पद्यों में दो गद्यकाव्य है और एक संत तुलसी साहब की आरती है। इन पद्यों में ऐसी मिठासपूर्ण  मादकता है कि गायक से लेकर साधारण जनों के मुख पर भी सदैव गुनगुनाते देखा जा सकता है! इतना ही नहीं इनमें  लोकोपकारी भावना, चेतावनी, निर्गुण, मुमुक्षु साधकों  के हितकारी आदि भावनाओं से भी ओतप्रोत है। इसी से मन भाव विभोर हो आनंद में नाचने लगता है । आइए गुरु महाराज के इस पुस्तक का सिंहावलोकन करें। 

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पदावली के मुखपृष्ठ,
पदावली का मुख्य पृष्ठ

स्तुति-प्रार्थना, सन्तमत सिद्धांत, ध्यान-योग, संकीर्तन, आरती आदि के संकलन

     प्रभु प्रेमियों  !  पदावली में अभिव्यक्त विचारों का वर्गीकरण इसमें भिन्न प्रणाली से किया गया है । परम प्रभु परमात्मा , सन्तगण और मार्गदर्शक सद्गुरु , इन तीनों को एtक ही के तीन रूप समझकर इन तीनों की स्तुति - प्रार्थनाओं को प्रथम वर्ग में स्थान दिया गया है । क्योंकि सन्त गरीबदासजी ने निर्देश दिया है --
 "साहिब से सतगुरु भये , सतगुरु से भये साध । 
              ये तीनों अंग एक हैं , गति कछु अगम अगाध ॥
 साहब से सतगुरु भये , सतगुरु से भये सन्त । 
           धर धर भेष विलास अंग , खेलैं आद अरु अन्त ॥ "

महर्षि मेंही पदावली के आंतरिक पृष्ठ
पदावली का आंतरिक पृष्ठ


     द्वितीय वर्ग में सन्तमत के सिद्धांतों का एकत्रीकरण है ।  तृतीय वर्ग में प्रभु - प्राप्ति के एक ही साधन ' ध्यान - योग ' का संकलन है , जो मानस जप , मानस ध्यान , दृष्टि - साधन और नादानुसंधान या सुरत - शब्द - योग का अनुक्रमबद्ध संयोजन - सोपान है । 


भारतीय में ही पदावली के संस्करण मूल्य अन्य विवरण पृष्ठ
पदावली का संस्करण

     चतुर्थ वर्ग में ' संकीर्तन ' नाम देकर तद्भावानुकूल गेय पदों के संचयन का प्रयत्न है । पंचम वर्ग में आरती उतारी गई है अर्थात् उपस्थित की गई है । साधकों की सुविधा का ख्याल करके नित्य प्रति की जानेवाली स्तुति - प्रार्थनाओं , संतमत - सिद्धान्त एवं परिभाषा - पाठ आदि को प्रारंभ में ही अनुक्रम - बद्ध कर दिया गया है और उसे स्तुति प्रार्थना का अंग मानकर उसी वर्ग में स्थान दिया गया है ।

महर्षि मेंहीं पदावली के अंतिम कवर पृष्ठ
पदावली लास्ट कवर

 पदावली के सबसे महत्वपूर्ण बात

     गन्तव्य स्थान की दिशा एवं वहाँ तक जाने के मार्गों तथा सहायक संवलों को बिना जाने और बिना लिये ही जो यात्री चल देता है , उससे गन्तव्य स्थल तक पहुँचने की कोई आशा ही नहीं की जाती , उलटे उसके रास्ते में ही भटकने और भटककर नष्ट हो जाने की सम्भावना होती है । 

     यही बात ऐसे साधकों के लिए भी है , जिन्होंने ईश्वर - स्वरूप , उनकी प्राप्ति की युक्ति - युक्त साधन विधि तथा उसकी सफलता के हेतु सदाचार , सत्संग , सद्गुरु - सेवा आदि संवलों का बिना संचयन किये केवल भावुकतावश कुछ करने में अपने को लगा दिया है । सच्चे सदाचारी साधकों को यह स्पष्ट बोध होगा कि गागर में सागर की भाँति इस पदावली में इन सब ज्ञान - दिशाओं का निदर्शन है । साथ ही वे यह भी प्रतीत कर सकेंगे कि ऐसी शक्ति - संवेग - पूरिता वाणी केवल सन्तजन ही अभिव्यक्त करने में समर्थ हो सकते हैं । इसी श्रद्धा और विश्वास से हमें उत्प्रेरणा होती है कि साधनशील मुमुक्षु इससे सहायक प्रकाश प्राप्त करेंगे। ∆


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     प्रभु प्रेमियों ! अन्य साहित्य सीरीज के इस पोस्ट का पाठ करके आप लोगों ने जाना कि 👉  महर्षि मेँहीँ बाबा का जीवनी पदावली में है । महर्षि मेँहीँ के 145 भजन भी है। महर्षि मेँहीँ जयंती एवं अन्य उत्सवों पर इन भजनों का गायन होता है। महर्षि मेँहीँ का स्तुति विनती आरती भी है।   इत्यादि बातें।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार   का  कोई संका या प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें।  इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बताएं, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग के  सदस्य बने। इससे  आप आने वाले हर पोस्ट की सूचना  आपके ईमेल पर नि:शुल्क भेजा जायेगा। ऐसा विश्वास है .जय गुरु महाराज.!!! 



    प्रभु प्रेमियों ! महर्षि मेँहीँ साहित्य सीरीज  की अगली पुस्तक  MS08 . मोक्ष दर्शन  है । . इस पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी के लिए    👉 यहां दवाएँ। 

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