MS09  ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति  ||   ईश्वर भक्ति क्यों करें?  ||  Complete knowledge of God's devotion.

MS09 ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति || ईश्वर भक्ति क्यों करें? || Complete knowledge of God's devotion.

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MS09  ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति

     प्रभु प्रेमियों ! महर्षि मेँहीँ साहित्य सीरीज की आठवीं पुस्तक "मोक्ष-दर्शन" है । इस पुस्तक में सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज बताते हैं कि  ईश्वर के ज्ञान की वृद्धि से क्या लाभ होता है? भगवान के ध्यान चार ज्ञान कौन से हैं? ईश्वर के उपदेश से ज्ञान में वृद्धि होती है। ज्ञानयोग का Album ग्रन्थ कौन सा है? गीता के अनुसार ज्ञान योग क्या है? कर्मयोग ज्ञानयोग भक्तियोग क्या है? ज्ञान योग का अर्थ क्या है? ईश्वर के अर्थ को बताने वाला और भगवान को समझाने वाला पीडीएफ और ओरिजिनल बुक है । आइए मुक्त संबंधी बातों को क्रमानुसार समझने के लिए मोक्ष दर्शन पुस्तक का दर्शन करें


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MS09 ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति पुस्तक।
  ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति


ईश्वर भक्ति क्यों करें?  Complete knowledge of God's devotion

     प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ  परमहंसजी महाराज इसमें कहते हैं कि  ईश्वर भक्ति क्यों करें? मनुष्य शरीर की विशेषता, मनुष्य का शरीर कैसा है? मनुष्य शरीर से क्या-क्या हो सकता है? मनुष्य शरीर का सर्वोत्तम काम क्या है? ब्रह्मचर्य सहित अन्य कौन सा काम करना चाहिए? अपने देश का नियम क्या था? स्वावलम्बी जीवन का महत्व, असली ईश्वर भक्ति क्या है? ईश्वर भक्ति के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? इत्यादि बातें। आइये कुछ नमुना रूप में देखें-+



MS09 ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति ||  ईश्वर भक्ति क्यों करें?  पुस्तक का आंतरिक पृष्ठ 1
ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति 1


ईश्वर भक्ति क्यों करें?

प्यारे लोगों  ! 
     यह बात बहुत प्रसिद्ध है। शास्त्रीय रूप से प्रसिद्ध है-

'नर समान नहिं कवनिउ देही । 
                            जीव चराचर जाचत जेही ॥"

     अर्थात् मनुष्य शरीर के समान कोई भी - शरीर नहीं है, जिसको जड़-चेतन सभी चाहते हैं। 'जीव चराचर' - चलनेवाले, नहीं चलनेवाले जितने प्राणी हैं, सभी मनुष्य - शरीर चाहते हैं। मनुष्य, पक्षी चलनेवाले हैं और वृक्ष, पहाड़ चलनेवाले नहीं हैं। सभी चाहते हैं कि मनुष्य शरीर मिले। किसी मनुष्य से पूछिये कि हाथी बहुत बड़ा जानवर है, वह आप बनना चाहते हैं? कोई पसन्द नहीं करेगा। गो की पूजा हम करते हैं; लेकिन गो या बैल होना कोई पसन्द नहीं करता। मनुष्य- शरीर उत्तम शरीर है। कितना उत्तम है यह? उपनिषत्कार ने कहा है-

'देह शिवालयं प्रोक्तं सिद्धिदं सर्वदेहिनाम्।' 

     मनुष्य - देह शिवालय है। इसमें सबको सिद्धि मिलती है। ''देहं विष्ण्वालयं प्रोक्तं सिद्धिदं सर्वदेहिनाम्।' मनुष्य देह ठाकुरबाड़ी है। इसमें सबको सिद्धि मिलती है। हाड़-मांस को लोग अपवित्र समझते हैं; लेकिन जबतक जीवित मनुष्य- शरीर में लगा हुआ है, तबतक पवित्र हैं। संसार में जितने जो कुछ प्राणी हैं, सबसे विशेष मनुष्य है। परमार्थ साधन, देव-पूजन, मोक्ष का साधन इसी शरीर से होते हैं; और ये हैं भी इसी शरीर के लिए । मनुष्य - शरीर ही इस काम को आरम्भ कर सकता है और धीरे-धीरे करके समाप्त कर सकता है और किसी शरीर में नहीं । 'सुर दुर्लभ सब ग्रन्थहिं गावा।' इसलिए कि यह शरीर सभी साधनों का घर है। जो यत्न करो; सफल होओगे। और जो मुक्ति में जाना चाहें; वे मनुष्य शरीर में - आकर जा सकते हैं और किसी शरीर में नहीं ।

MS09 ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति पुस्तिका का आंतरिक पृष्ठ 2
ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर-भक्ति 2



     मोक्ष पाने का यत्न करना चाहिए; इसी के लिए सन्त उपदेश करते हैं--

'निधड़क बैठा नाम बिनु, चेति न करै पुकार । 
                यह तन जल का बुदबुदा, बिनसत नाहीं बार॥'  
                                                         -- कबीर साहब 

     यह शरीर बड़ा अच्छा है; लेकिन क्या बालपन, क्या बुढ़ापा, क्या जवानी का शरीर, यम के फन्दे में जो शरीर पड़ेगा, वह जाएगा ही । लेकिन ठिकाना नहीं, कब यम के फन्दे में आ जाएगा?

नहँ बालक नहँ जौवने, नहँ विरधी कछु बन्ध । 
          वह अवसर नहिं जानिये, जब आय पड़े जम फन्द ॥
                                                        - गुरु नानक साहब 

      इस शरीर से मोक्ष का साधन अवश्य करो। मोक्ष - साधन करो और कोई काम नहीं करो, ऐसी बात सन्त लोग नहीं कहते। ऐसा भजन जिससे मोक्ष हो, सो करो और जबतक जीवन हैं, तभी तक साधन कर सकते हो। मोक्ष के लिए साधन है। जो अत्यन्त अपेक्षित है, वह करो । 


MS09 ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर भक्ति का अंतिम आवरण
ज्ञान-योग-युक्त ईश्वर-भक्ति अंतिम आवरण

 नोट--  इसके कवर पर छपा मुल्य काफी पुराना है। इसे यादगार बनाने के लिए ही इस फोटो को रखा गया है। 



देश का पुराना नियम

    जबसे होश हो, सचेत होओ, तबसे भजन करो। हमारे देश का पुराना नियम है, पहले ब्रह्मचर्य का पालन करो। ब्रह्मचर्य का पालन कब से करो ? जब से उपनयन हुआ अर्थात् जन्म के बाद जो दूसरा संस्कार हो जाय। जन्म धारण करने पर पाँच-सात वर्षों के बाद उत्सव कराते हैं, उसमें जनेऊ देते हैं। उसी समय से शुचिता से रहने के लिए सिखाया जाता है। गायत्री मन्त्र का जप करने को भी कहा जाता है। इस मन्त्र के साथ प्राणायाम भी बताया जाता है। प्राणायाम - हीन गायत्री - जप निर्जीव होता है- निष्फल होता है। संयम के साथ जप करने से लाभ होता है। उपनयन होने पर विद्या के लिए गुरुकुल जाओ और वहाँ विद्याभ्यास के साथ गायत्री मन्त्र का जप भी करो । विद्या समाप्त कर घर जाओ । गृहस्थ-जीवन में प्रवेश करो और उपनयन के समय में जो दीक्षा प्राप्त किए हो, सो भी करो । फिर घर छोड़कर संन्यास लेने की बात थी; वह नियम अब खतम हो गया। लेकिन ऐसा जाना जाता है कि उस समय बचपन से ही लोग योग सिखाने का काम करते थे। लोग योग सीखते थे।


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MS10  ईश्वर का स्वरूप और उसकी प्राप्ति
ईश्वर-स्वरूप

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