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MS11 भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली
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संत तुलसी साहब जीवनी और योगात्मक वाणी भावार्थ सहित
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज संत तुलसी साहब जी के यथार्थ जीवनी का अथक प्रयासों से पता लगा कर "भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली" की भूमिका में लिखा है और उनकी योगाभ्यास संबंधित वाणीयों सहित उसके यथार्थ भावार्थ और व्याख्या लिखकर जन समाज में फैले भ्रम का निवारण और योगाभ्यास के सही स्वरूप को भी जनाया है। आइये इसे अच्छी तरह समझें।
भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली की भूमिका से
घट रामायण में क्या बताया गया है?
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(१) परम प्रभु सर्वेश्वर को मनुष्य अपने घट में कहाँ और कैसे पा सकता है, यह विषय घट रामायण में अत्यन्त उत्तमता से लिखा हुआ है। इसके अतिरिक्त घट-संबंधी और अनेक बातें इसमें लिखी हुई हैं। पर इसकी मुख्य बात घट में परम प्रभु के पाने का सरल भेद ही है। घट रामायण में यह भेद ऐसा सरल बतलाया गया है कि जिसके द्वारा अभ्यास करने से अभ्यासी को अभ्यास के कारण शारीरिक कष्ट और रोगादि होने की कोई खटक नहीं होती है और गृही तथा वैरागी सब मनुष्य सरलतापूर्वक इसका अभ्यास कर सकते हैं। इसमें शरीर से नहीं केवल सुरत से अभ्यास करने का भक्तिमय भेद लिखा हुआ है। परम प्रभु सर्वेश्वर से मिलने के भक्तिमय भेद की यह एक अनुपम पुस्तक है। इसमें भक्ति करने की अत्यन्त आवश्यकता बतलाकर बाहरी और अन्तरी दोनों भक्तियों का वर्णन है ।
घट रामायण पुस्तक की भ्रांतियां
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घट रामायण के इन पद्यों में साधु, सन्त और सद्गुरु की सेवा और सत्संगादि बाहरी भक्ति का वर्णन है। और
'पकरि पट पिउ पिउ करै।'
'सतगुरु अगम सिन्धु सुखदाई । जिन सत राह रीति दरसाई ।। मोरे इष्ट सन्त स्स्रुति सारा। सतगुरु सन्त परम पद पारा ॥ सतगुरु सत्त पुरुष अविनासी । राह दीन लखि काटी फाँसी। जिन सतगुरु पद चरन सिहारा। सोइ पारस भये अगम अपारा ॥ सतगुरु पारस सन्त बखाना। चौथा पद चढ़ि अगम कहाना । और इष्ट नहिं जानै भाई | सतगुरु चरन गहै चितलाई || हम सन्तन मत अगम बखाना। हम तो इष्ट सन्त को जाना। उन सम इष्ट और नहिं भाई। राम करम बस भौ के माँई ॥ 1*
'तुलसी साहब की दृष्टि तासे निरखा अदृष्ट । सत्त लोक पुरुष इष्ट वे दयाल न्यारा ।' 'तुलसी इष्ट सन्त को जाना । निरगुन सरगुन दोउ न माना ॥'*
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1* श्रीराम के वनवास दूसरे दिन की रात में गंगाजी के तट पर उनको वृक्ष- पत्तों के बिछौने पर सोये देखकर लक्ष्मणजी के पास बैठे गुह निषाद ने बहुत खेद और दुःख की बातें कहकर कहा कि माता कैकेयी ने इनको बहुत कष्ट दिया। तिस पर लक्ष्मणजी ने निषाद से कहा- 'काहु न कोउ सुख दुख कर दाता । निज कृत करम भोग सुनु भ्राता ।।'
* सन्त को इष्ट मानना परन्तु निर्गुण सगुण नहीं मानना अयुक्त और विचित्र बात जान पड़ती है।
घट रामायण की साधनात्मक वाणियां
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सत्संग सुधा भाग 1 |
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